भीम कारवाँ जिस मानसिकता से लड़ रहा है,कहीं आप भी उसी मानसिकता के साथ तो नहीं

December 26, 2018

भीम कारवाँ  जिस  मानसिकता से लड़ रहा है,कहीं आप भी उसी मानसिकता के साथ तो नहीं



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भीम कारवाँ से जुड़े 90% लोग एक सच्चे सिपाही नहीं है ,

भीम कारवाँ  जिस मानसिकता से लड़ रहा है,कहीं आप भी उसी मानसिकता के साथ तो नहीं ...


दोस्तों इस पोस्ट को पूरा पढ़े और अपने आप की जांच करें , आपकी दृष्टिकोण कहीं भीमराव अंबेडकर की दृष्टिकोण से अलग तो नहीं -

अगर मैं आपसे  कहूं कि हिंदू धर्म के ठेकेदार धर्म के रक्षक नहीं बल्कि धर्म के भक्षक  हैं जिन्होंने धर्म की परिभाषा ही बदल दी है तो शायद आप कहेंगे कहीं हद तक सही है , शायद आप इससे अनजान नहीं है कि धर्म के नाम पर कितनी लूट चल रही है |
दोस्तों अगर मैं कहूं कि यहीं स्थित हर जगह हो गई है चाहे वह कोई भी धर्म या समुदाय ही क्यों ना हो हर जगह बस अपने आपको बड़ा व ऊंचा दिखाने की होड़ में एक नई मानसिकता को जन्म दे रहे हैं जो आपकी दृष्टिकोण को बदल रहा है |
दृष्टिकोण का , व्यक्ति के जीवन में बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है |
माना आप किसी व्यक्ति की वेशभूषा या जाति अन्य के आधार से देखते हैं तो यह आपका नजरिया है और आगे चलकर आपका यही नजरिया उसकी एक पहचान आपके अचेतक मन में आ जाएगी  , आपको यकीन हो जाएगा कि इस समुदाय , जाति,धर्म की व्यक्तियों की वेदभूषा ऐसी होती है या फिर ये ऐसे लोग होते हैं |
आपका दृष्टिकोण समदृष्टा नहीं रहेगा |
यहां समदृष्टा का मतलब आपका नजरिया सबके लिए बराबर होना चाहिए ना कोई ऊंचा और ना ही कोई नीचा है सभी आपके लिए समान है , चाहे वह किसी जाति , धर्म या किसी अन्य समुदाय का ही क्यों ना हो |

कुछ  लोगों का मानना है कि बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर अपने समुदाय और जाति के अधिकार व सम्मान को दिलाने की लड़ाई लड़ रहे थे परंतु वे अंग्रेजों से नहीं लड़ रहे थे वह एक समुदाय को लेकर आगे बढ़ में`रहे थे और कहीं हद तक उस समुदाय के लोग भी ऐसा मानते हैं यही कारण है कि उनमें यह संप्रदायवाद भावना का जन्म हो गया डॉ भीमराव अंबेडकर की दृष्टिकोण से उस समुदाय के बहुत से लोगों की दृष्टिकोण डॉक्टर बी आर अंबेडकर की दृष्टिकोण के विपरीत हो गई

समुदाय के लोगों ने अनजाने में फिर उस मानसिकता को विकसित करने लगे जिस मानसिकता से अंबेडकर लड़ रहे थे |

आप की लड़ाई किससे है - जाति से या जातिवाद से...
डॉ भीमराव अंबेडकर एक सच्चे देशभक्त थे | अनेक लोगों ने उनका अपमान किया यहां तक की एक प्रोफेसर के रूप में उन्हें विद्यार्थी चपरासी से अपमान सहना पड़ा  , पर उन्होंने समाज या किसी जाति विशेष से लड़ना नहीं शुरू किया बल्कि अंबेडकर उन मानसिकता से लड़ना चाहते थे जो समाज को चोटिल कर रही थी उसे आगे बढ़ने से रोक रही थी |
यदि  आप अपने आप को जाती , धर्म या समुदाय के आधार पर ऊंचा समझते हैं तो एक मानसिकता तथा अपने आप को नीचा समझते हैं तो वह एक मानसिकता ही होगी | ऐसी बुरी मानसिकता समाज व देश को बहुत पीछे कर देती तथा संप्रदायवाद  विचारधारा को जन्म देती है जो समाज में बुराइयों और दंगे - फसाद को जन्म देती है |

आंबेडकर और आप की विचारधारा में क्या फर्क है आज  इस बात को समझाना होगा - वो एक महान राजनीतिज्ञ , अर्थ-शास्त्री थे | जिन्हें ये पता था की  हमारे देश में सामाजिक असमानता है | यही कारण है कि अंग्रेज उनका फायदा उठा रहे हैं हमें सबसे पहले सामाजिक लड़ाई लड़नी होगी यही कारण है कि उनकी लड़ाई छुआछूत , अंधविश्वास , जात-पात , धर्म में व्याप्त बुराइयों से थी | उनकी लड़ाई जातियों से नहीं जातिवाद से  थी उन्हें पता था हर बार लड़ाइयां सत्ता के लिए होती रही है| सबसे पहले लड़ाई आर्यों से , फिर मुगलों से , फिर यूनानीओं से , फिर फ्रांसीसी , डचो व फिर अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी गई और वो भी केवल सत्ता के लिए और शोषण समाज का होता रहा , ऐसी आजादी किस काम की जहां अनेक प्रकार की सामाजिक बुराइयां फैली हो जो उन्हें मानसिक रूप से गुलाम बनाए हुए है | उन्हें पता था यदि ये सामाजिक बुराइयां खत्म कर दिया तो देश में कोई कब्ज़ा  नहीं कर पाएगा | हम अपनी एकता को तोड़ते हैं यदि हमारी लड़ाई किसी जाति धर्म या किसी समुदाय से हो जाती है |बाबासाहेब ने संविधान की प्रस्तावना में साफ-साफ पहला वाक्य लिखा है कि - ‘हम भारत के लोग’......... और हमें इस बात को समझना होगा कि भारत में रहने वाला हर एक नागरिक भारतीय है |और हमारी पहचान किसी समुदाय जाति या धर्म से नहीं बल्कि देश से जुड़ी है |
अंबेडकर कहते थे - वह पहले भी भारतीय  है , और बाद में भी भारतीय है | वह यह नहीं कहते थे कि - वह पहले भारतीय है , फिर हिंदू या बौद्धदिष्ट है |
दोस्तों यहां समझने वाली बात यह है कि हमें किसी समुदाय या किसी जाति को लेकर आगे नहीं बढ़ना है बल्कि देश को आगे लेकर बढ़ना है आपकी लड़ाई किसी समुदाय , धर्म को लेकर नहीं होनी चाहिए बल्कि उस मानसिकता से होनी चाहिए जो समाज की पतन के मार्ग में ले जा रही है |
यदि आप लोगों को वेशभूषा या जाति के आधार पर बांट रहे हो तो आप एक सच्चे देशभक्त नहीं हो सकते |
आज हमारी लड़ाई छुआछूत , जातिपात ,अंधविश्वास , रूढ़िवादी परंपराओं और अशिक्षा से है , न कि किसी जाति , धर्म या व्यक्ति विशेष से |
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