कविता चुनावी वादे - जालसाज सपने

April 02, 2019

कविता चुनावी वादे - जालसाज सपने by VijayKumar

कविता चुनावी वादे - जालसाज सपने By Vijay Kumar



बिखर गए सपने सब,
लगा जोर जब इरादों पर |
भूखे थे पर सो गए ,
ना कसा शिकंजा जब वादों पर |

बदलेंगे हम , बदलेगा यह जहां
जालसाज के सागर में ,
लगेगा गोता जब |
हकीकत ना सही ,
सपनों में घूम लेंगे जहां |

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