संत रविदास की जीवनी
Biography of Sant Ravidas (Raidas)
संत शिरोमणि रविदास जी महान संतों में से एक है इनका नाम महान संतों में अग्रणी है उन्होंने बहुत सारी रचनाएं लिखें तथा समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर किया |
संत रविदास के जन्म को लेकर एक दोहा बहुत अधिक प्रचलित है जो उनके जन्म के बारे में बताता है -
चौदह से तैंतीस कि माघ सुदी पन्दरास ।
दुखियों के कल्याण हित प्रगटे श्री रविदास।|
संत शिरोमणि रविदास के विषय में सामान्य परिचय
नाम ⇛ संत रविदास
अन्य प्रचलित नाम - रैदास ,रामदास , गुरु रविदास , संत रविदास
जन्म ⇛ 1450 ईस्वी (संवत १४३३)
जन्म स्थान ⇛ काशी ( वाराणसी )
गुरु ⇛ स्वामी रामानन्द
माता का नाम ⇛ घुरबिनिया
पिता का नाम ⇛ रघ्घू या राघवदास
पुत्र का नाम ⇛ विजयदास
पुत्री का नाम ⇛ लोना ,रविदासिनी
रविदास की शिष्या ⇛ मीरा बाई
रविदास की मृत्यु ⇛ 1540 ईस्वी
संत शिरोमणि रविदास जी अपने समय के एक विख्यात संतों में से एक थे यह अनेक संतो के साथ रहकर पर्याप्त व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त कर लिया था इनका व्यवसाय जूते बनाने का व्यवसाय था यह वह अपना काम को पूरी निष्ठा व लगन से करते थे |
वह एक बहुत कुशल कारीगर के साथ साथ एक निष्ठावान व्यक्ति भी थे वह स्वभाव से प्रसन्न रहते थे
वह अत्यधिक वक्त साधु सत्संग में रहते थे वह एक परोपकारी स्वभाव के थे यही कारण है कि वह जब संतों के जूते बनाते थे तो उनसे पैसे नहीं लेते थे इसी स्वभाव के चलते घर के लोग उनसे काफी परेशान थे तथा कुछ समय बाद उनके पिता ने उनको घर के बाहर निकाल दिया और वह अपनी पत्नी के साथ पड़ोस में ही अक नया घर बना कर रहने लगे |
रविदास ने धर्म के नाम पर किए जाने वाले आडंबरों का विरोध किया धर्म के नाम पर ऊंच-नीच को समझना वह गलत मानते थे वह इसे धर्म का हिस्सा नहीं मानते थे |
रविदास जी ने बहुत सारे भजनों दोंहो को लिखा और इसके माध्यम से वह लोगों के सामने अपनी बातों को रखते थे तथा लोग उनके दोहों तथा भजनों को सुनकर भाव विभोर हो जाते थे |
समाज के लोग उनसे बहुत अधिक प्रभावित थे यही कारण है कि बहुत से लोग उनके शिष्य बन गए |
मीराबाई भी गुरु रविदास की शिष्या थी
रविदास के कुछ प्रमुख दोहे बहुत प्रसिद्ध है-
वह अत्यधिक वक्त साधु सत्संग में रहते थे वह एक परोपकारी स्वभाव के थे यही कारण है कि वह जब संतों के जूते बनाते थे तो उनसे पैसे नहीं लेते थे इसी स्वभाव के चलते घर के लोग उनसे काफी परेशान थे तथा कुछ समय बाद उनके पिता ने उनको घर के बाहर निकाल दिया और वह अपनी पत्नी के साथ पड़ोस में ही अक नया घर बना कर रहने लगे |
रविदास ने धर्म के नाम पर किए जाने वाले आडंबरों का विरोध किया धर्म के नाम पर ऊंच-नीच को समझना वह गलत मानते थे वह इसे धर्म का हिस्सा नहीं मानते थे |
रविदास जी ने बहुत सारे भजनों दोंहो को लिखा और इसके माध्यम से वह लोगों के सामने अपनी बातों को रखते थे तथा लोग उनके दोहों तथा भजनों को सुनकर भाव विभोर हो जाते थे |
समाज के लोग उनसे बहुत अधिक प्रभावित थे यही कारण है कि बहुत से लोग उनके शिष्य बन गए |
मीराबाई भी गुरु रविदास की शिष्या थी
रविदास के कुछ प्रमुख दोहे बहुत प्रसिद्ध है-
जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात।रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात।।
मन चंगा तो कठौती में गंगा ||
मन ही पूजा मन ही धूप ,मन ही सेऊँ सहज सरूप।
ब्राह्मण मत पूजिए जो होवे गुणहीनपूजिए चरण चंडाल के जो होवे गुण प्रवीन
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