चुनावी सरगर्मी - नामुमकिन अब मुमकिन है |Chunavi Sargarmi - Namumkin Ab Mumkin Hai Kavita(POETRY) by VijayKumar

March 05, 2019


चुनावी सरगर्मी - नामुमकिन अब मुमकिन है




साहेब यह कौन सा साल है ,
मित्रों यह चुनावी साल है |
इस चुनावी साल में नहीं होगी बातें यूथ की ,
केवल अब बातें होंगी बूथ की ||



भूल जाओ अब बातें रोजगार की ,

साथ खड़े होकर बोलो अब सरकार की |


बनेगी सरकार इन अंधो(अंधभक्तों ) की ,
रखकर बंदूक शहीद जवानों के कंधो पर |
जवानों पर हो चाहे जितने हमले ,
नहीं रुकेगे ये चुनावी जुमले ||


देश पड़ा है संकट में ,
धर्म पड़ा 
है खतरे में |
उलझ न जाना इनकी बातों में ,
सरकार टिकी है इनकी ,
शहीद जवानों की लाशों में ||


छोड़ो भी बातें अब ,
शिक्षा , स्वास्थ्य ,किसान व रोजगार  पर |
सरकार टिकेगी अब ,
मंदिर- मस्जिद,गाय, गंगा व गोबर की आड़ पर |



बदलेंगे हम इतिहास,
अपने हाथों से | 
जब लोकतंत्र की चौथी सीढ़ी ,
नाचेगी अपने हाथों से ||


लोकतंत्र की चौथी सीढ़ी ,
जब होगी अपने साथ |
इतिहास कहेगा अपनी बात ,
नामुमकिन अब मुमकिन होगा ||


- VijayKumar



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